Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्म की रक्षा करने से हमारी रक्षा होती है तथा धर्म के नाश से हमारा नाश होता है। अतएव अपने धर्म को कभी नाश न करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए ।’’
(स० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि, मरा हुआ धर्म ही मारने वाले का नाश, तथा रक्षित किया हुआ धर्म ही रक्षा करने वाले की रक्षा करता है। इसलिए, धर्म का हनन कभी न करना चाहिए, ऐसा न हो कि कहीं हनन किया हुआ धर्म हमें ही मार डाले।