Manu Smriti
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कृष्णसारस्तु चरति मृगो यत्र स्वभावतः ।स ज्ञेयो यज्ञियो देशो म्लेच्छदेशस्त्वतः परः । । 2/23

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
काला मृग (हिरन) अपने स्वभाव से जिस देश में रहे वह देश यज्ञ करने के योग्य है। उसके आगे म्लेच्छ देश है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यत्र जिस देश में स्वभावतः कृष्णसारः चरति स्वाभाविक रूप से ही काला मृग विचरण करता है सः यज्ञियः देशः ज्ञेयः वह यज्ञों से सुशोभित अथवा पवित्र देश जानना चाहिए, अतः परः म्लेच्छदेशः इससे भिन्न म्लेच्छ देश है ।
टिप्पणी :
‘‘जो आर्यावत्र्त देश से भिन्न देश हैं वे दस्यु देश और म्लेच्छ देश कहाते हैं ।’’ (स० प्र० अष्टम समु)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(कृष्णासारः तु चरति मृगः यत्र स्वभावतः) जहां काला मृग स्वभावतः विचरता है (स ज्ञेयः यज्ञियः देशः) वह देश यज्ञदेश समझना चाहिये। (म्लेच्छदेशः तु अतः परः) म्लेच्छदेश इसके परे है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिस आर्यावर्त में कृष्णमृग स्वभावतः बेखटके विचरता है, उस आर्यावर्त को यज्ञिय या पवित्र देश समझना चाहिए। इस आर्यावर्त से जो भिन्न देश हैं वे म्लेच्छदेश कहलाते हैं।१ १. स० स० ८
 
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