Manu Smriti
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सभां वा न प्रवेष्टव्यं वक्तव्यं वा समञ्जसम् ।अब्रुवन्विब्रुवन्वापि नरो भवति किल्बिषी ।।8/13

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सभा में जाना न चाहिये, यदि जावें तो सत्य तथा उचित बात कहनी चाहिये। यदि जानकार सत्य न बोलें, वरन् उसके विपरीत कहें तो पापी होता है, क्योंकि आत्मा के हनन करने का पाप उसे होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धार्मिक मनुष्य को योग्य है कि सभा में कभी प्रवेश न करे और जो प्रवेश किया हो तो सत्य ही बोले जो कोई सभा में अन्याय होते हुए को देखकर मौन रहे अथवा सत्य, न्याय के विरूद्ध बोल वह महापापी होता है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
‘‘मनुष्य को योग्य है कि सभा में प्रवेश न करे, यदि सभा में प्रवेश करे तो सत्य ही बोले । यदि सभा में बैठा हुआ भी असत्य बात को सुनके मौन रहे अथवा सत्य के विरूद्ध बोले वह मनुष्य अतिपापी है ।’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए धार्मिक मनुष्य को चाहिए कि वह या तो न्यायसभा में प्रवेश न करे, और यदि प्रवेश करे तो सत्य-न्याय ही कहे। क्योंकि, जो सभा में प्रवेश करके सभा में होते हुए अन्याय को देख कर मौन रहता है या अन्याय का समर्थन करता हुआ सत्य-न्याय के विरुद्ध बोलता है, वह मनुष्य महापापी होता है।
 
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