Manu Smriti
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धर्मो विद्धस्त्वधर्मेण सभां यत्रोपतिष्ठते ।शल्यं चास्य न कृन्तन्ति विद्धास्तत्र सभासदः ।।8/12

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अधर्म से विघा हुआ (अर्थात् अघम मिश्रित) धर्म जिस सभा में रहता है तथा उस सभा के सभासद अधर्म को रोक नहीं सकते हों तो वे सभासद अधर्म से बिंध गए हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस सभा में अधर्म से घायल होकर धर्म उपस्थित होता है जो उसका शल्य अर्थात् तीरवत् धर्म के कलंक को निकालना और अधर्म का छेदन नहीं करते अर्थात् धर्मों का मान, अधर्मी को दण्ड नहीं मिलता उस सभा में जितने सभासद् हैं वे सब घायल के समान समझे जाते हैं । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
‘‘अधर्म से धर्म घायल होकर जिस सभा में प्राप्त होवे उसके घाव को यदि सभासद् न पूर देवें तो निश्चय जानो कि उस सभा में सब सभासद् ही घायल पड़े हैं ।’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि, जहां सभा में अधर्म से घायल होकर धर्म उपस्थित होता है और वे उसके शल्य को नहीं उखेड़ते, अर्थात् अधर्म का छेदन कर धर्मी को मान तथा अधर्मी को दण्ड नहीं देते, वहां उपस्थित सब सभासद् अधर्म-शल्य से स्वयं घायल हो जाते हैं।
 
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