Manu Smriti
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एषु स्थानेषु भूयिष्ठं विवादं चरतां नृणाम् ।धर्मं शाश्वतं आश्रित्य कुर्यात्कार्यविनिर्णयम् ।।8/8

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा सदैव चित्त में धर्म का ध्यान रखकर न्यायालय के कार्यकत्र्ताओं तथा राजकर्मचारियों के कार्य का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करे जिससे वह लोग आलस्य, तथा धनापहरण द्वारा अन्याय कर राजा के न्याय को दूषित न करें।
टिप्पणी :
मनु के मतानुसार नारदस्मृति है कि राजा के सैनिक सभासद धर्मशास्त्र, संरक्षक लेखक, सोना, अग्नि, जल, न्यायालय के कार्यकत्र्ता हैं इस विषय में बृहस्पति व व्यास का कथन और देवहार, वाष्र्णे धर्मसूत्र, वृहद पाराशर स्मृति, मिताक्षरा, शुक्र कीर्ति, मत्स्य पुराण देखने योग्य हैं कि किस-किस कार्य पर कौन-कौन कुल के मनुष्यों को नियत करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इन व्यवहारों में बहुत से विवाद करने वाले पुरूषों के न्याय को सनातन - धर्म का आश्रय करके किया करे अर्थात् किसी का पक्षपात कभी न करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इन विवाद-ग्रस्त व्यवहारों में अत्यधिक विवाद करने वाले पुरुषों के न्याय के ठीक-ठीक निर्णय, सनातन धर्म का आश्रय लेकर, किया करे। अर्थात्, किसी का पक्षपात कभी न करे।
 
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