Manu Smriti
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आ समुद्रात्तु वै पूर्वादा समुद्राच्च पश्चिमात् ।तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्तं विदुर्बुधाः । । 2/22

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र पर्यनत और हिमान्चल और विन्धयाचल का मध्य%* आय्र्यावर्त कहलाता है।
टिप्पणी :
*हिसार के समीप।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. आ - समुद्रात्तु वै पूर्वात् जो पूर्वसमुद्र से लेकर आ - समुद्रात्तु पश्चिमात् पश्चिम समुद्रपर्यन्त विद्यमान तयोः एव गिर्योः अन्तरम् उत्तर में हिमालय और दक्षिण में स्थित विन्ध्याचल का मध्यवर्ती देश है, उसे बुधाः आर्यावर्त विदुः विद्वान् आर्यावर्त कहते हैं । (ऋ० दया० पत्र० विज्ञा० ९९ हिन्दीअनुवाद) यज्ञिय और म्लेच्छ देश -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(आसमुद्रात् वै पूर्वात्) समुद्र तक पूर्व की ओर (आसमुद्रात् तु पश्चिमात्) और समुद्र तक पश्चिम की ओर (तयोः एव अन्तरं गिर्योः) दोनों पर्वतों के बीच में (आर्यावर्तं विदुबुधः) आय्र्यावर्त जानते हैं बुद्धिमान लोग। अर्थात् आय्र्यावर्त उस देश को कहते हैं जो दो पहाड़ों के बीच में समुद्र से समुद्र तक फैला हुआ है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पूर्व समुद्र से लेकर पश्चिम समुद्र तक उन्हीं हिमालय और विन्ध्य पर्वतों के अन्तवर्ती उसी ब्रह्मावर्त को विद्वान् लोग आर्यावर्त समझते हैं।१
टिप्पणी :
१. आर्यावर्त की अवधि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र; तथा पश्चिम में सरस्वती, अटक नदी (सिन्धु) जो उत्तर के पहाड़ों से निकल कर पश्चिम के समुद्र की खाड़ी में मिली है, और पूर्व में द्षद्वती, जो नेपाल के पूर्वभाग पहाड़ से निकल के बंगाल और आसाम के पूर्व और ब्रह्मा के पश्चिम ओर होकर दक्षिण के समुद्र में मिली है जिसको ब्रह्मपुत्रा कहते हैं, है। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण ओर और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जितने देश हैं, उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते हैं कि यह आर्यावर्त देव अर्थात् विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से ‘आर्यावर्त’ कहाया है। (स० स० ८) आर्या आवर्तन्ते पुनः पुनः वर्तन्तेऽत्रेति आर्यावर्त्तः। हिमालय, विन्ध्याचल, सिन्धु नदी और ब्रह्मपुत्रा नदी, इन चारों के बीच, और जहाँ तक उनका विस्तार है, उनके मध्य में जो देश है, उसका नाम आर्यावर्त है। (आर्योदेश्यरत्नमाला)
 
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