Manu Smriti
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प्रत्यहं देशदृष्टैश्च शास्त्रदृष्टैश्च हेतुभिः ।अष्टादशसु मार्गेषु निबद्धानि पृथक्पृथक् ।।8/3

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
देशरीति व शास्त्राज्ञा के अनुसार साक्षियों की साक्षी आदि भिन्न भिन्न विधि से पृथक पृथक परीक्षा कर अठारह प्रकार के अभियोगों का निर्णय करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सभा, राजा और राजपुरूष सब लोग देशाचार और शास्त्रव्यवहार के हेतुओं से निम्नलिखित अठारह विवादास्पद मार्गों में विवादयुक्त कर्मों का निर्णय प्रतिदिन किया करें ।
टिप्पणी :
और जो - जो नियम शास्त्रोक्त न पावें, और उनके होने की आवश्यकता जानें, तो उत्तमोत्तम नियम बांधे कि जिससे राजा और प्रजा की उन्नति हो । (स० प्र० षष्ठ समु०) बांधे अर्थात् नियत किये गये...................... अलग - अलग.......................... स० प्र० षष्ठ समुल्लास में स्वामी जी ने पुनः श्लोक की प्रथम पंक्ति उद्धृत करके लिखा है - ‘‘जो नियम राजा और प्रजा के सुखकारक और धर्मयुक्त समझें, उन - उन नियमों को पूर्णविद्वानों की राज - सभा बांधा करे ।’’
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उस समय राजा न्यायाधीश के वेष-भूषा को धारण किये हुए, न्यायगद्दी पर बैठ कर या खड़े होकर, तथा अपने दहिने हाथ को हुक्म लिखने के लिए उद्यमयुक्त करके वादी-प्रतिवादियों के मुकद्दमों को देशाचार तथा शास्त्रव्यवहार हेतुओं के प्रतिदिन देखा करे, जोकि भिन्न-भिन्न प्रकार के अठारह विवादस्पद भागों में विभक्त किये गये हैं।
 
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