Manu Smriti
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व्यवहारान्दिदृक्षुस्तु ब्राह्मणैः सह पार्थिवः ।मन्त्रज्ञैर्मन्त्रिभिश्चैव विनीतः प्रविशेत्सभाम् ।।8/1

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा, बुद्धिमान मन्त्री व विद्वान् ब्राह्मण को साथ लेकर सामान्य वस्त्रा आभूषण धारण करके न्यायालय में प्रवेश करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
व्यवहारों अर्थात् मुकद्दमों को देखने अर्थात् निर्णय करने का इच्छुक राजा न्याय ज्ञाता विद्वानों सलाहकारों और मन्त्रियों के साथ विनीतभाव से राजसभा - न्यायालय में प्रवेश करे ।
टिप्पणी :
श्रृघि श्रुत्कर्ण वह्निभिः, देवैरग्ने सयावभिः । आ सीदन्तु बर्हिषि मित्रोऽअर्यमा प्रातर्यावाणोऽध्वरम् ।। यजु० ३३।१५।। भाषार्थ - प्रार्थी के वचन को सुनने वाले कानों से युक्त अग्नि के तुल्य तेजस्वी विद्वान् वा राजन्! साथ चलने वाले, कार्य के निर्वाहक विद्वानों के साथ हिंसा रहित राज्यव्यवहार को (ऐसा मुकद्दमा जिसमें किसी के साथ अन्याय न हो) सुन । प्रातः राजकार्यों को प्राप्त कराने वाले, पक्षपात से रहित सबका मित्र और अर्य - वैश्य वा स्वामी जनों का मान करने वाला न्यायाधीश आकाश के तुल्य विशाल सभा में विराजमान हों । भावार्थ - सभापति राजा, सुपरीक्षित अमात्यजनों को स्वीकार करके, उनके साथ सभा में बैठकर, विवाद करने वालों के वचनों को सुनकर, यथार्थ न्याय करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
प्रजा के अन्याय-व्यवहारों को (अपीलों को) देखने के लिए विनीत न्यायकारी राजा ब्राह्मणों और न्यायविचार को जानने वाले न्यायमंत्रियों के साथ न्यायसभा में प्रवेश करे।
 
USER COMMENTS
Comment By: Ashish kumar
Kya mujhe serial wise manusmriti mil Sakti hai book ke roop mai
Comment By: ADMIN
नमस्ते ashish kumar जी यह मनुस्मृति पूर्ण ही तो है इसमें कुछ भी कम या ज्यादा नहीं है हां यदि हार्ड कॉपी चाहिए तो सुरेन्द्र कुमार जी द्वारा टिका की गई लीजिये उससे भी पूरा स्पष्टीकरण हो जाएगा
 
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