Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कोष का धन शून्य होना, प्रकृति का कोप तथा मित्र से शत्रुता एक ही समय पर तीनों कार्य हों तो मोह माया त्याग साम आदि जो उपाय हैं उनमें से एक एक को वा सबको करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सब प्रकार की आपत्तियां तीव्ररूप में और एक सा उपस्थित हुई देखकर बुद्धिमान् सम्मिलित रूप से और पृथक् - पृथक् रूप से अर्थात् जैसे भी उचित समझे सब उपायों को उपयोग में लावे ।