Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
आपदर्थं धनं रक्षेद्दारान्रक्षेद्धनैरपि ।आत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।।7/213

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विपत्ति समय के निमित्त धन संचय करें, धन द्वारा स्त्री की रक्षा करें तथा स्त्री व धन द्वारा आत्मा की रक्षा करें।
टिप्पणी :
इस श्लोक में यह बतलाया गया है कि श्री व धन आदि प्रत्येक वस्तु आत्मा के निमित्त हैं। अतएव आत्मा की रक्षा सब से प्रथम आवश्यक है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. आपत्ति में पड़ने पर आपत्ति से रक्षा के लिए धन की रक्षा करे, और धनों की अपेक्षा स्त्रियों की अर्थात् परिवार की रक्षा करे स्त्रियों से भी और धनों से भी बढ़कर निरन्तर अपनी रक्षा अर्थात् राजा के लिए आत्मरक्षा करना सबसे आवश्यक है । यदि उसकी रक्षा नहीं हो सकेगी तो वह न परिवार की रक्षा कर सकेगा और न धन की न राज्य की ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS