Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो शत्रु पण्डित, कुलवान्, शूरवीर, दत्त, (चतुर), दाता, उपकारज्ञाता तथा धीर है वह अति कठिन है अर्थात् वह वश में नहीं आ सकता, यह पण्डितों ने कहा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सदा इस बात को दृढ़ रखे कि कभी बुद्धिमान् कुलीन शूरवीर चतुर दाता किये हुए को जानने हारे और धैर्यवान् पुरूष को शत्रु न बनावे क्यों कि जो ऐसे को शत्रु बनावेगा वह दुःख पावेगा ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा सदा इस बात का ध्यान रखे कि बुद्धिमान्, कुलीन, शूर-वीर, चतुर, दाता, कृतज्ञ और धैर्यवान् पुरुष से कभी शत्रुता न करे। क्योंकि, जो ऐसे को शत्रु बनावेगा, वह दुःख पावेगा, ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं।