Manu Smriti
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एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः ।स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः । । 2/20

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सारी पृथ्वी के सब मनुष्य अपनी उत्पत्ति तथा आचार इस देश के वासी ब्राह्मणों से जानें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. एतत् देशप्रसूतस्य इसी ब्रह्मावर्त देश (१३६ - १३७) में उत्पन्न हुए अग्रजन्मनः सकाशात् ब्राह्मणों - विद्वानों के सान्निध्य से पृथिव्यां सर्वमानवाः पृथिवी पर रहने वाले सब मनुष्य स्वं स्वं अपने - अपने चरित्रं शिक्षेरन् आचरण तथा कत्र्तव्यों की शिक्षा ग्रहण करें ।
टिप्पणी :
महर्षि दयानन्द ने उसी आर्यावर्त के पाठ के अनुसार अर्थ किया है - ‘‘इसी आर्यावत्र्त में उत्पन्न हुए ब्राह्मणों अर्थात् विद्वानों से भूगोल के सब मनुष्य - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, दस्यु, म्लेच्छ आदि सब अपने अपने योग्य विद्या चरित्रों की शिक्षा और वि़द्याभ्यास करें ।’’ (स० प्र० एकादश समु०)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एतद् देशप्रसूतस्य) इस देश में उत्पन्न हुए, (सकाशात्) से (अग्रजन्मनः) बुजुर्ग की (स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्) अपने अपने चरित्र को सीखें। (पृथिव्याम्) पृथिवी में (सर्वमानवः) सब मनुष्य। मनु का आदेश है कि ब्रह्मर्षि देश के रहने वाले पूर्वजों से ही भूमण्डल के अन्य देशों के लोग सदाचार सीखें। क्योंकि यह लोग सदाचार में प्रमाण हैं।
 
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