Manu Smriti
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धर्मज्ञं च कृतज्ञं च तुष्टप्रकृतिं एव च ।अनुरक्तं स्थिरारम्भं लघुमित्रं प्रशस्यते ।।7/209

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्मज्ञाता, कृतज्ञ, दूरदर्शी, उत्तम प्रकृति वाला अनुरक्त मित्र बहुत ही प्रशंसनीय है, क्योंकि उसी से लाभ की सम्भावना है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धर्म को जानने और कृतज्ञ अर्थात् किये हुए उपकार को सदा मानने वाले प्रसन्न स्वभाव अनुरागी स्थिरारम्भी (स्थिरता पूर्वक कार्य करने वाला) लघु - छोटे मित्र को प्राप्त होकर प्रशंसित होता है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
धर्म को जानने वाला, किये हुए उपकार को सदा मानने वाला, प्रसन्नस्वभाव, अनुरागी तथा स्थिरारम्भी छोटा मित्र प्रशस्त होता है।
 
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