Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यद्यपि प्रिय वस्तुओं का लेना कष्ट देना वाया है, तथा देना इच्छित सुख का देने वाला है यह बात संसार-व्यापी है, तथापि विशेष समय पर देना व लेना अच्छा होता है, अतः उस समय दान ही करना चाहिये।
टिप्पणी :
क्षत्रिय लोग प्रत्येक हर्ष कार्य में दान करें और धर्म का ध्यान रखें तो देश में धर्म बराबर चल सकता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
क्यों कि संसार में दूसरे का पदार्थ ग्रहण करना अप्रीति और देना प्रीति का कारण है, और समय पर उचित क्रिया करना उस पराजित के मनोवांच्छित पदार्थों का देना बहुत उत्तम है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि संसार में दूसरे के अभीष्ट पदार्थों का ग्रहण करना अप्रीति और उन पदार्थों का दे देना प्रीति का कारण होता है। विशेषकर, समय पर उचित क्रिया का करना व पराजित को उसके मनोवञ्छित पदार्थों का देना, बहुत उत्तम होता है। एवं, उसको न कभी चिड़ावे, न हंसी-ठट्ठा करे, न उसके सामने तुझको हमने पराजित किया है’ ऐसा कहे। किन्तु आप हमारे भाई हैं, इत्यादि मान्य-प्रतिष्ठा ही सदा करे।