Manu Smriti
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सर्वेषां तु विदित्वैषां समासेन चिकीर्षितम् ।स्थापयेत्तत्र तद्वंश्यं कुर्याच्च समयक्रियाम् ।।7/202

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब की सम्मति पाकर उस राजा के वश में जो हो उसको उसी के स्थान पर राजा बनावें, तथा उस राजा व उसके मन्त्रियों को वह उपदेश कर दें कि तुम ऐसा करना ऐसा न करना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. विजित प्रदेश की इन सब प्रजाओं की इच्छा को संक्षेप से अर्थात् सरसरी तौर पर जानकर कि वे किसे अपना राजा बनाना चाहती हैं या कोई और विशेष आकांक्षा हो उसे भी जानकर उस राजसिंहासन पर उस प्रदेश की प्रजाओं में से उन्हीं के वंश के किसी व्यक्ति को बिठा देवे और उससे शर्तनामा लिखा लेवे (कि अमुक कार्य तुम्हें स्वेच्छानुसार करना है, अमुक मेरी इच्छा से । इसी प्रकार अन्य कर, अनुशासन आदि से सम्बद्ध बातें भी उसमें हों) ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
तदनन्तर, तद्देशवासी इन राजकर्मचारियों और प्रजाओं की संक्षेपतः सम्मति को जानकर, उस राष्ट्र में उसी राजघराने के किसी श्रेष्ठ मनुष्य को राजगद्दी पर बैठावे, और समयानुसारी समस्त राज्यप्रबन्ध की व्यवस्था करे।
 
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