Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विजय ¬प्राप्त करने के पश्चात् देवताओं, धर्मात्मा ब्राह्मणों का पूजन करें, सोना आदि विजय द्वारा प्राप्त वस्तुओं को देवताओं व ऋषियों के लिये संकल्प करके उस देशवासियों का क्षमारूप देवें और सब मनुष्यों को निर्भय कर दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विजय प्राप्त करके जो धर्माचरणवाले विद्वान् ब्राह्मण हों उनको ही सत्कृत करे अर्थात् उनको अभिवादन करके उनका आशीर्वाद ले और जिन प्रजाजनों को युद्ध में हानि हुई है उन्हें क्षतिपूर्ति के लिए सहायता दे तथा सब प्रकार के अभयों की घोषणा करा दे कि ‘प्रजाओं को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं दिया जायेगा अतः वे सब प्रकार से भय - आशंका - रहित होकर रहे’ ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
शत्रुका विजय करके राजा उस विजित धन से उसी देश के ऋषियों, तथा धार्मिक ब्राह्मणों का आदर-सत्कार करे। श्रेष्ठ सैनिक व राजकर्मचारियों किंवा जिन प्रजाजनों को हानि पहुंची हो, उन्हें भेंटें दे। और, वहां की समस्त प्रजा के लिए अभय-प्रदान की घोषणा करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
विजय प्राप्त करने पर देप ब्राहा्रण धार्मिक लोगों की पूजा करे । (परिहारान पदघात) जिनकी हानी हुई है उनको प्रतीकार के रूप में धन दे । (परिहारन पदघात) जिनकी हानी हुई है उनको प्रतीकार के रूप मे धन दे (अभयानि च ख्यापयेत) और अभय की घोषणा कर दे । अर्थात घोषणा कर दे कि अब किसी को किसी प्रकार का भय न होना चाहिये ।
(प्रकष्ट स्वामिकम रिक्थम) जिस जायदाद को स्वामी नष्ट हो गया हो अर्थात लावारिस उसको राजा तीन वर्ष के लिये अपने आधीन कर ले । (त्रि अब्दात अर्वाक) तीन वर्ष के बाद वह जायदाद राजा की हो जाय ।