Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ताल, दुर्ग प्राकार, परिखा (खाई), इन सब को नष्ट भृष्ट कर दें तथा निर्भयशत्रु को भयभीत करें और बरछी लेकर रात्रि को डहका नाम बाजे के शब्द से अति दुःख दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
शत्रु के तालाब नगर के प्रकोट और खाई को तोड़ - फोड़दे रात्रि में उनको भय देवे और जीतने का उपाय करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
आवश्यकतानुसार शत्रु को चारों ओर से घेर कर रोक रखे। और, उसके राज्य को पीड़ित कर एकदम उसका चारा, अन्न जल और इन्धन नष्ट व दूषित करदे।
उसके तालाबों किंवा नगर के परकोटों-खाइयों को तोड़-फोड़ दे, तथा रात्रि में उसको भय-त्रास देवे। एवं, उस शत्रु को शक्तिहीन करके जीते।