Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
व्यूह रचकर सेना को प्रसन्न करें तथा उस सैन्यदल की भली भाँति परीक्षा लेवें, शत्रु के सम्मुख युद्ध करते हुए सेना की दशा ज्ञात करें कि सेना शत्रु से मिल तो नहीं गई है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस समय युद्ध होता हो तो उस समय लड़ने वालों को उत्साहित और हर्षित करें, जब युद्ध बंद हो जाये तब जिससे शौर्य और युद्ध में उत्साह हो वैसे वक्तृत्वों से सबके चित्त को खान - पान, अस्त्र - शस्त्र, सहाय और औषधादि से प्रसन्न रखे, व्यूह के बिना लड़ाई न करे, न करावे लड़ती हुई अपनी सेना की चेष्टा को देखा करे कि ठीक - ठीक लड़ती है वा कपट रखती है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
व्यूह-रचना रच के जिस समय युद्ध होता हो, उस समय योद्धाओं को शौर्य तथा उत्साह देने वाली वीररस भरी वक्तता से हर्षित किंवा उत्साहित करे, तथा जब युद्ध बन्द हो जावे, तब उन सब के चित्त को खान-पान अस्त्र-शस्त्र-सहाय से और औषधादि से प्रसन्न रखे। उन व्यूहों का भली प्रकार पर्यालोचन करे, किंवा व्यूह के बिना लड़ाई कभी न करे। तथा, लड़ते हुए योद्धाओं की सब चेष्टाओं को देखे कि क्या वे ठीक-ठीक लड़ रहे हैं या कोई कपट रख रहे हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सेना का उत्साह बढावे । जब उनके व्यूह बनें तो उनकी भली भाॅति परीक्षा करे । (अरीन योघयताम अपि चेष्टा विजानीयात ) जब शत्रुओ से लडते हों तो भी उनकी चेष्टाओ को जानता रहे।