Manu Smriti
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संहतान्योधयेदल्पान्कामं विस्तारयेद्बहून् ।सूच्या वज्रेण चैवैतान्व्यूहेन व्यूह्य योधयेत् ।।7/191

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सेना थोड़ी होवे तो सम्मुख युद्ध करें तथा अधिक हो तो इच्छानुसार सेना विभाजित करके युद्ध करें (1) सूची व्यूह व (2) वज्र व्यूह रच कर युद्ध करें।
टिप्पणी :
(1 व 2) यह एक ¬प्रकार की सैनिक कवायद है और पंक्ति बांधन की विधि है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो थोड़े पुरूषों से बहुतों के साथ युद्ध करना हो तो मिलकर लड़ावें और काम पड़े तो उन्हीं को झट फैला देवें, जब नगर, दुर्ग वा शत्रु की सेना में प्रविष्ट होकर युद्ध करना हो तब ‘सूचीव्यूह’ तथा ‘वज्रव्यूह’ जैसा दुधारा खड्ग, दोनों ओर युद्ध करते जायें और प्रविष्ट भी होते चलें वैसे अनेक प्रकार के व्यूह अर्थात् सेना को बनाकर लड़ावें । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब थोड़े से योद्धाओं से बहुतों के साथ युद्ध करना हो, तो सब को मिल कर लड़ावे, बहुतों को वेशक फैलावे। जब नगर, दुर्ग, व शत्रु की सेना के अन्दर प्रविष्ट होकर युद्ध करना हो, तो आगे से शत्रुओं को काटते चले जाने वाले सूचीव्यूह, तथा दोनों पार्श्वों से छेदते जाने वाले वज्रव्यूह से सैनिक-रचना रचकर उन्हें लड़ावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अल्पान संहतान योधयेत) योद्धा यदि थाडे हो तो उनको मिलाकर लडावे। (कामम विस्तारयेत बहून) बहुत हो तो उनको फैला दे । सूची व्यूह और वज्र व्यूह को बनाकर युद्ध करावे ।
 
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