Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सेनापति और बलाध्यक्ष आज्ञा को देने और सेना के साथ लड़ने - लड़ाने वाले वीरों को आठों दिशाओं में रखें जिस ओर से लड़ाई होती हो उसी ओर सब सेना का मुख रखे ।
परन्तु दूसरी ओर भी पक्का प्रबंध रक्खे, नहीं तो पीछे वा पाश्र्व से शत्रु की घात होने का सम्भव होता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सेनापति और बलाध्यक्ष, अर्थात् आज्ञा देने और सेना के सहित लड़ने-लड़ाने वाले वीरों को आठों दिशाओं में सन्निवेशित करे। और, जिस ओर से अधिक भय की आशङ्का समझे, अर्थात् जिस ओर से प्रधान युद्ध हो रहा हो, उसी दिशा की ओर सब सेना का मुख रखे। अन्य पश्चात्-पार्श्ववर्ती दिशाओं में यद्यपि उतना अधिक बल न लगावे, तथापि उनमें भ्ीा पक्का प्रबन्ध रखे, नहीं तो पीछे व पार्श्व से शत्रु के घात का होना सम्भव होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सेना पति और उनके अघ्यक्षो को सब दिशाओ में नियुक्त करे जिस दिशा में अधिक भय हो उसी को पूर्व दिशा माने। अर्थात उधर को ही अधिक घ्यान रक्खे।