Manu Smriti
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यतश्च भयं आशङ्केत्ततो विस्तारयेद्बलम् ।पद्मेन चैव व्यूहेन निविशेत सदा स्वयम् ।।7/188

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस ओर से भय हो उसी ओर सेना को बढ़ावें, नगर से निकल कर पद्म व्यूह रच राजा सदैव गुप्त रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिधर भय विदित हो उसी ओर सेना की फैलावे सब सेना के पतियों को चारों ओर रख के पद्याव्यूह अर्थात् पद्याकार चारों ओर से सेनाओं को रख के मध्य में आप रहे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, जिधर से भय की आशंका समझे, उस ओर सेना को फैलावे। तथा आप सदा कमलव्यूह रचकर उसके मध्य में स्थित रहे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जिधर से भय की आशंका हो उधर ही सेना अधिक रक्खे। या पध व्यूह की रचना करे यह सेनाओ के भिन्न भिन्न प्रकार के व्यूह है इनको दक्ष सेनाघ्यचा ही समक्ष सकते है
 
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