Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
दण्डव्यूहेन तन्मार्गं यायात्तु शकटेन वा ।वराहमकराभ्यां वा सूच्या वा गरुडेन वा ।।7/187

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दण्ड, शकट, वराह, कमर, सूची व गरुड़ व्यूह बनाकर सेना का संचालन करें (अर्थात् जब चारों ओर से भय हो तब दण्ड व्यूह बनावें जब पीछे से भय हो तब शकट व्यूह बनाकर चलें, जब एक व दोनों पक्ष में भय है तब वराह तथा गरुड़ व्यूह बनाकर सेना चलावें, जब सम्मुख व पृष्ठ भागों में भय हो तब मगर व्यूह बनावें, जब सम्मुख भय हो तब सूची व्यूह बनाकर सेना संचालित करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
दण्ड के समान सेना को चलावे जैसा शंकट अर्थात् गाड़ी के समान वराह जैसे सूअर एक दूसरे के पीछे दौड़ते जाते हैं और कभी कभी सब मिलकर झुण्ड हो जाते हैं वैसे; जैसे मगर पानी में चलते हैं वैसे सेना को बनावे जैसे सूई का अग्रभाग सूक्ष्म पश्चात् स्थूल और उससे सूत्र स्थूल होता है वैसी शिक्षा से सेना को बनावे ; नीलकण्ठ (गरूड़) ऊपर नीचे झपट्टा मारता है इस प्रकार सेना को बनाकर लड़ावे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा समयानुसार दण्डव्यूह, शकटव्यूह, सूकरव्यूह, मकर-व्यूह, सूचीव्यूह और गरुड़व्यूह से उस युद्धमार्ग पर चले। अर्थात् ऐसे-ऐसे व्यूह रचकर शत्रु से युद्ध करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दण्ड व्यूह शकट व्यूह वराह व्यूह मकर व्यूह सूची व्यूह गरूड व्यूह ऐसे व्यूह बनाकर सेना को ले जावे ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS