Manu Smriti
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यथैनं नाभिसंदध्युर्मित्रोदासीनशत्रवः ।तथा सर्वं संविदध्यादेष सामासिको नयः ।।7/180

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सारी रीति से मुख्य तात्पर्य यह है कि शत्रु मित्र तथा उदासीन यह सब पीड़ा व हानि न पहुँचा सकें ऐसा उपाय करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सब प्रकार के राजपुरूष, विशेष सभापति राजा ऐसा प्रयत्न करे कि जिस प्रकार राजादि जनों के मित्र, उदासीन और शत्रु को वश में करके अन्यथान कर पावें, ऐसे मोह में न फंसे यही संक्षेप से तय अर्थात् राजनीति कहाती है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा सब ऐसे विधान (नियम) वर्ते कि जिससे उसके मित्र, उदासीन, और शत्रु उसे किसी तरह न दबा सकें। यही संक्षेप से राजनीति का मूलमन्त्र है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथा) जिस रीति से (मित्र उदासीन शत्रुवः) मित्र उदासिन और शत्रु (एवम न अभि स दध्यु) इसको वश में न करने पावे । (तथा सर्वम संविदघ्यात) वैसा सब उपाय करें (एष सामासिक नयः) यह संक्षेप से नीति कही है
 
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