Manu Smriti
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सर्वोपायैस्तथा कुर्यान्नीतिज्ञः पृथिवीपतिः ।यथास्याभ्यधिका न स्युर्मित्रोदासीनशत्रवः ।।7/177

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
लोगों की सम्मति के ज्ञाता राजा को चाहिये कि इस भांति प्रबन्ध करे जिसमें मित्र, शत्रु व सामान्य मनुष्य राजा से बलवान् न हो जावें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नीति का जानने वाला पृथिवीपति राजा जिस प्रकार इसके मित्र, उदासीन - मध्यस्थ और शत्रु अधिक न हों ऐसे सब उपायों से वत्र्ते । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, राजनीतिज्ञ राजा को चाहिए कि वह सब उपायों से ऐसा यत्न करे कि जिस से उसके मित्र, उदासीन, व शत्रु, उस पर प्रभुत्व न जमा सकें, अर्थात् उस पर हावी न हो सकें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
नीतिज्ञ राजा को सब उपायों से ऐसा करना चाहिये कि उसके मित्र उदासीनता या शत्रु बढ न जावे ।
 
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