Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस राजा को शत्रु की ¬ प्रकृति तथा सेना को अधीन कर वश में रखने की सामथ्र्य हो उसकी सेवा सदैव गुरु की नाईं करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो प्रजा और अपनी सेना और शत्रु के बल का निग्रह करे अर्थात् रोके उसकी सब यत्नों से गुरू के सदृश नित्य सेवा किया करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो राजा, जिस सेना-प्रजा आदि प्रजा के दोष से उसकी ऐसी हीन दशा हुई है, उस आत्म-प्रजा और शत्रु-बल का निग्रह कर सके, ऐसे राजा की सेवा पूरे प्रयत्न से सदा गुरु के समान करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तम) उस पुरूष की (सर्वयत्नैः) सब यत्नों से (गुरूम यथा) गुरू के समान (नित्यम उपसेवेत) नित्य सेवा करे । (प्रकृतीनाम निग्रहम कुर्यात) जो परिस्थितियों को वश में रख सकता हो (यः अरिवलस्य च) और जो शत्रु की सेना का भी दमन कर सकता हो।