Manu Smriti
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यदा मन्येत भावेन हृष्टं पुष्टं बलं स्वकम् ।परस्य विपरीतं च तदा यायाद्रिपुं प्रति ।।7/171

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब अपने बल अर्थात् सेना को हर्ष और पुष्टि युक्त प्रसन्न भाव से जाने और शत्रु का बल अपने से विपरीत निर्बल हो जावे तब शत्रु की ओर युद्ध करने के लिए जावे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब राजा यथार्थतः अपनी सेना-प्रजा को हृष्ट-पुष्ट समझे, और शत्रु की सेना-प्रजा को इसके विपरीत निर्बल-सामर्थ्यहीन धनहीन जाने, तब शत्रु पर चढ़ाई करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यदा) जब (मन्वेत) जाने (भावेन) भाव से अपने बल को हष्ट पुष्ट और (परस्य) शत्रु के बल को विपरीत जाने तभी (रिपुम प्रतियायात) शत्रु पर चढाई कर दे।
 
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