Manu Smriti
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यदावगच्छेदायत्यां आधिक्यं ध्रुवं आत्मनः ।तदात्वे चाल्पिकां पीडां तदा संधिं समाश्रयेत् ।।7/169

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब लड़ाई के पश्चात् अपनी लड़ाई को अटल जाने और थोड़े ही धन जल आदि की हानि देखे तब सन्धि करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब यह जान ले कि इस समय युद्ध करने से थोड़ी पीड़ा प्राप्त होगी और पश्चात् (भविष्य) में करने से अपनी वृद्धि और विजय अवश्य होगी तब शत्रु से मेल करके उचित समय तक धीरज रखे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब राजा यह जानले कि यद्यपि इस समय तो मुझे कुछ थोड़ी पीड़ा-हानि है, परन्तु भविष्यत् में अपनी निश्चित बृद्धि व विजय है, तब शत्रु के साथ संधि करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यदा ) जब (अवगचछेत) जाने कि अपना (आयत्यामा) भविष्य (ध्रुवंम) निश्चय रूप से (आधिक्यम) अच्छा है । परन्तु (तदात्वे अल्पिकाम पीडाम) और उस समय थोडी पीडा है (तदा सन्धिम समाश्रयेत) उस समय सन्धि कर ले ।
 
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