Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शत्रु से दुखी न हों व शत्रु से दुःख न होने वावे इन दोनों लाभों के अर्थ बलवान राजा की शरण लेना यह दो प्रकार की शरण है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘एक - किसी अर्थ की सिद्धि के लिए कभी बलवान् राजा वा किसी महात्मा की शरण लेना, जिससे शत्रु से पीडि़त न हो; दो प्रकार का आश्रय लेना कहाता है ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
शत्रुओं द्वारा पीडि़त होकर अपने उद्देश्य की सिद्धि अथवा आत्मरक्षा के लिए किसी राजा का आश्रय लेना और भावी हार या दुःख से बचने के लिए किसी श्रेष्ठ राजा का आश्रय लेना ये दो प्रकार का ‘संश्रय’ कहलाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
शत्रुओं से सताये जाने पर स्वप्रयोजन की सिद्धि के लिए किसी बलवान् राजा की शरण लेना, अथवा न सताए जाने पर भी साधु बलवान् राजाओं में अपने आप को कहलाने के लिए, कि जिससे आगे सताए जाने की आशंका न रहे, किसी बलवान् राजा की शरण लेना, यह दो प्रकार का संश्रय माना गया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
संश्रय दो प्रकार का होता है । एक तो शत्रु से पीडित होकर अर्थ सम्पादन के लिये किसी का आश्रय लेना दूसरा किसी राजा को बहुत अच्छा और उपकारी समक्षकर उसका आश्रय लेना ।