Manu Smriti
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बलस्य स्वामिनश्चैव स्थितिः कार्यार्थसिद्धये ।द्विविधं कीर्त्यते द्वैधं षाड्गुण्यगुणवेदिभिः ।।7/167

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपनी कार्य सिद्ध के लिये हाथी, घोड़ा आदि व सेनापति को शत्रु के किये हुए उपद्रव मिटाने के निमित्त एक स्थान पर स्थिर रखना यह पहला भेद हुआ तथा दुर्ग में प्रधान कर्मचारियों और सब सेना सहित स्थित रहना यह दूसरा भेद हुआ।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘कार्यसिद्धि के लिए सेनापति और सेना के दो विभाग करके विजय करना दो प्रकार का द्वैध कहाता है ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
षड्गुणों के महत्व को जानने वालों ने द्वैधीभाव दो प्रकार का कहा है - कार्य की सिद्धि के लिए १- सेना के दो भाग करके एक भाग सेना को सेनापति के आधीन करना और २ - सेना का एक भाग राजा द्वारा अपने आधीन रखना ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
कार्यसिद्धि के लिए युद्ध करने वाली सेना का युद्ध में स्थापित करना, और सुरक्षित सेना (क्रद्गह्यद्गह्म्1द्ग द्घशह्म्ष्द्ग) के सहित राजा का पृथक् स्थापित करना, इस प्रकार इन दो विभागों में सेना के विभाजन को षड्गुण के महत्त्व को जानने वाले राजनीतिज्ञों ने ‘द्वैध’ बतलाया है। एवं, यह द्वैध एक ही प्रकार का है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
द्वैध दो प्रकार का होता है । एक तो बल (सेना) का दूसरा स्वामी का ।
 
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