Manu Smriti
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समानयानकर्मा च विपरीतस्तथैव च ।तदा त्वायतिसंयुक्तः संधिर्ज्ञेयो द्विलक्षणः ।।7/163

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उसी समय व भविष्य में फल-प्राप्ति के अर्थ एक राजा के साथ दूसरे राजा पर चढ़ाई करना यह समान-यान नाम सन्धि कहाती है और यदि परस्पर यह ¬प्रतिज्ञा करके कि तुम वहाँ जावोगे तो हम भी जावेंगे सन्धि करें तो वह आकाशयान नाम सन्धि है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘शत्रु से मेल अथवा उससे विपरीतता करे, परन्तु वर्तमान और भविष्यत् में करने के काम बराबर करता जाये; यह दो प्रकार का मेल कहाता है ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
तात्कालिक फल देने वाली और भविष्य में फल देने वाली सन्धि दो प्रकार की होती है - १. किसी राजा से मेल करके एक साथ शत्रुराजा पर चढ़ाई करना उसी प्रकार दूसरी उससे विपरीत अर्थात् किसी राजा से मेल करके अलग - अलग दिशाओं से शत्रुराजा पर आक्रमण करना ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वर्तमान और भविष्यत् में लाभ की आशा से किसी दूसरे राजा के साथ मिल कर जब शत्रु पर सम्मिलित चढ़ाई की जाती है, तब उसे ‘समानयानकर्मा’ संधि कहते हैं। तथा, हम इस पर चढ़ाई करेंगे, तुम उस पर चढ़ाई करो, ऐसा मेल करके भिन्न-भिन्न दो राजाओं पर चढ़ाई करने के लिए जो मेल किया जाता है, उसे ‘विपरीत-यानकर्मा’ संधि कहते हैं। एवं, यह दो प्रकार की संधि जाननी चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तदा त्वायति संयुक्त सन्धि) वह सन्धि जो तात्कालिक या भविष्य में फल दे सके दो प्रकार की होती है (1) समानयान कर्मा जिसमे दो मित्र मिलकर किसी पर आक्रमण करे (2) विपरीत अर्थात असमानयानकर्मा जिसमे मित्र दल अलग अलग किसी पर आक्रमण करते है ।
 
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