Manu Smriti
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संधिं तु द्विविधं विद्याद्राजा विग्रहं एव च ।उभे यानासने चैव द्विविधः संश्रयः स्मृतः ।।7/162

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सन्धि, विग्रह, चढ़ाई, विश्राम, भेद, शरण लेना यह छः बातें दो दो प्रकार की हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. राजा, संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय दो - दो प्रकार के होते हैं, उनको यथावत् जाने ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
संधि, विग्रह, यान, आसन, और संश्रय, ये पाँच कर्म प्रत्येक दो दो प्रकार के हैं। उन्हें राजा यथावत् जाने।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
संधि विग्रह यान आसन और संश्रय दो दो प्रकार के होते है ।
 
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