Manu Smriti
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आसनं चैव यानं च संधिं विग्रहं एव च ।कार्यं वीक्ष्य प्रयुञ्जीत द्वैधं संश्रयं एव च ।।7/161

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन छहों कार्यों के अतिरिक्त कार्यों को देखकर समयानुसार काम करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सब राजादि राजपुरूषों को यह बात लक्ष्य में रखने योग्य है जो आसन - स्थिरता यान - शत्रु से लड़ने के लिए जाना संधि - उनसे मेल कर लेना दुष्ट शत्रुओं से लड़ाई करना द्वैध - दो प्रकार की सेना करके स्वविजय कर लेना और संश्रय - निर्बलता में दूसरे प्रबल राजा का आश्रय लेना, ये छः प्रकार के कम्र यथायोग्य कार्य को विचारकर उसमें युक्त करना चाहिए । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु आसन, यान, संधि, विग्रह द्वैध और संश्रय, इन ६ प्रकार के कर्मों को, कार्य्य को भलीप्रकार विचार कर, तब उसमें प्रयुक्त करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सन्धि विग्रह यान आसन द्वैधीभाव और संश्रय को विचार पूर्वक जहाॅ जैसा अवसर देखे वहाॅ बर्ते ।
 
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