Manu Smriti
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संधिं च विग्रहं चैव यानं आसनं एव च ।द्वैधीभावं संश्रयं च षड्गुणांश्चिन्तयेत्सदा ।।7/160

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
1-सन्धि, 2-विग्रह, 3-शत्रु पर चढ़ाई, 4-विश्राम, 5-भेद, और 6-बलवान् राजा का आश्रम ग्रहण करना, इन छः बातों पर सदैव विचार करना चाहिए।
टिप्पणी :
यह पांचों यथाक्रम कापटिक अस्थित गृहपति, वैदिक तथा तापस कहलाते हैं, अतएव इन साधनों से अपना कार्य सिद्ध करें। 1-जो राजा शत्रु तथा शत्रु पर विजय प्राप्त करने के इच्छुक राजाओं के मध्य में राज करता हो उसे मध्यम कहते हैं और इन दोनों राजाओं में सन्धि व विग्रह करा देने की सामथ्र्य रखता हो। 2-उदासीन वह है जो शत्रु शत्रु जय का इच्छुक तथा मध्यम इन तीनों राजाओं में सन्धि वा विग्रह करा देने की सामथ्र्य रखता हो। 3-आठ शाखा प्रकृति यह हैं-1-शत्रु के राज्य के मित्र, 2-शत्रु का मित्र, 3-मित्र का मित्र, 4-शत्रु के मित्र का मित्र, 5-पाष्र्णिमाह, 6-क्रन्द, पाष्णिमाह, 7-असार, 8-क्रन्द्र असार।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सन्धि विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय इन छः गुणों का भी राजा सदा विचार - मनन करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(७) संधि, विग्रह, शत्रुदेश पर चढ़ाई करना, उपेक्षा द्ष्टि का रखना (चुपचाप बैठे रहना), सेना को दो विभागों में बांट कर विजय करना, और किसी प्रबल राजा का आश्रय लेना, इन छः गुणों का सदा विचार करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
मेल लडाई चढाई उपेक्षा दैधीभाव तथा संश्रय (अर्थात किसको किसके आश्रित रहना चाहिये) इन छः पर विचार करे ।
 
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