Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
(1) आठ कर्म तथा सिद्धान्त से (2) पंच वर्ग को भी विचारें दूसरे राजाओं और अपने मन्त्रियों की प्रीति व शत्रुता को जान कर उसका उपाय करें।
टिप्पणी :
आठ कर्म यह हैं - (1) प्रजा से कर लेना, (2) कर्मचारियों को उचित समय पर वेतन देना, (3) धर्म व संसार के करने योग्य कर्मों को करना, (4) त्याग योग्य कर्मों का त्यागना तथा प्रत्येक कार्य के लिये मन्त्रियों को आज्ञा देना, (5) व्यवहार देखना, (6) जो व्यवहार विरुद्ध करे उससे शास्त्रानुसार अर्थदण्ड लेना, (7) जिन लोगों ने अपने दान, आश्रम, धर्म को परित्याग कर दिया है उनको फिर दान, आश्रम, धर्म को ठीक व उचित रीति पर कराने के लिये प्रायश्चित कराना (8) यदि ¬प्रायश्चित द्वारा पतित शुद्ध न किये जावें तो एक दिन सब मनुष्य दान, आश्रम, धर्म से पतित होकर अनाचारी हो जावेंगे अतएव राजा को पतितोद्वार पर अधिक ध्यान देना चाहिये।
2-पंच वर्ग यह हैं - 1. जो पुरुष दूसरों की हार्दिक बातों का ज्ञाता, स्पष्ट वक्ता, कपटी है यदि ऐसा पुरुष जीविकार्य आवे तो उसकी योग्यातानुसार धन वस्त्रादि देकर एकान्त में उससे कहे
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और सम्पूर्ण अष्टविध कर्म तथा पंच्चवर्गंदूतों की व्यवस्था अनुराग - लगाव और अपराग स्नेह का अभाव - द्वेष तथा राज्यमण्डल की स्थिति एवं आचरण इन बातों पर ठीक ठीक चिन्तन करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सम्पूर्ण अष्टविधिकर्म और पच्चवर्ग का पूरा पूरा विचार करे । अनुराग और उपराग तथा मंडल की कार्यवाहियों का भी चिन्तन करे ।