Manu Smriti
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परस्परविरुद्धानां तेषां च समुपार्जनम् ।कन्यानां संप्रदानं च कुमाराणां च रक्षणम् ।।7/152

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धन की प्राप्ति के लिये ऐसे उपाय सोचें कि जिसमें धर्म, अर्थ, काम जिनका परस्पर विरोध है-का धन हो। अपने कार्य की सिद्धि के लिये कन्या को दान व नीतिशास्त्रानुसार विद्याध्ययनार्थ कुमारों की रक्षा, इन बातों का भी विचार करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और उस धर्म - अर्थ - काम में परस्परविरोध आ पड़ने पर उसे दूर करना और उनमें अभिवृद्धि करना और कन्याओं और कुमारों का गुरूकुलों में भेजना और उनकी सुरक्षा तथा विवाह का भी विचार करे
टिप्पणी :
‘‘राजा को योग्य है कि सब कन्या और लड़कों को उक्त समय से उक्त समय तक ब्रह्मचर्य में रख के विद्वान् कराना । जो कोई इस आज्ञा को न माने तो उसके माता पिता को दण्ड देना अर्थात् राजा की आज्ञा से आठ वर्ष के पश्चात् लड़का वा लड़की किसी के घर मंथ न रहने पावें । किन्तु आचार्यकुल में रहे जब तक समावत्र्तन का समय न आवे तब तक विवाह न होने पावे ।’’ (स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१) धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष, इनमें यदि कभी परस्पर-विरुद्धता द्ष्टिगोचर होती हो, तो उस विरोध का परिहार करते हुए उनका सम्यक्तया संपादन करना, और राजा व प्रजा की लड़कियों को ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या-ग्रहणार्थ कन्या-गुरुकुलों में देना, और लड़कों को बालक-गुरुकुलों में रखना।१
टिप्पणी :
इससे लड़के-लड़कियों की अबाधित शिक्षा का राजनियम प्रदर्शित किया गया है। अतः, जो माता पिता इस नियम को भंग करने वाले होंगे, वे दण्डनीय समझे जावेंगे। (देखो सं० स० ३ का प्रारम्भ और अन्त)। इसी अध्याय के ५८वें श्लोक में यह भी दर्शाया जा चुका है कि ब्रह्म-निधि (विद्यारूपी कोष) में धन व्यय करना राजा का कर्तव्य है। अतः, शिक्षा-व्यय राज्य की ओर से किया जावेगा। गौतम बुद्ध के सुत्तनिपात में भी ब्राह्मण-धर्म बतलाते हुए ‘ब्रह्मं निधिमपालयु’ से इसी ब्रह्मनिधि का निर्देश किया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(परस्पर विरूद्धनाम तेषाम) धर्म अर्थ और काम मे यदि परस्पर विरोध पडे तो उनका (समुपार्जनम) विचारपूर्वक समन्वय करे जिससे किसी अंग को हानी न पहुचे । कन्याओं और कुमारो के विवाह तथा रिक्षा का भी प्रबन्ध करे।
 
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