Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस कार्य के करने में वेद की दो प्रकार की आज्ञायें हैं, उसमें दोनों आज्ञायें मान्य हैं। इस बात को पंडितों ने भले प्रकार (उत्तम रीति) से कहा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यत्र तु श्रुतिद्वैधं स्यात् जहाँ कहीं श्रुति वेद में दो पृथक् आदेश विहित हों तत्र ऐसे स्थलों पर उभौ वे दोनों ही विधान धर्मो स्मृतौ धर्म माने हैं मनीषिभिः मनीषी विद्वानों ने तौ उभौ अपि सम्यक् धर्मौ उक्तौ उन दोनों को ही श्रेष्ठ धर्म स्वीकार किया है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(श्रुतिद्वैधं तु यत्र स्यात्) जहां श्रुति या वेद में दो भिन्न-भिन्न बातें मिलें (तत्र धर्मौ उभौ स्मृतौ) वहाँ स्मृतिकार ने दोनेां को धर्म माना है। (उभौ अपि हि तौ धर्मौ सम्यक्-उक्तौ मनीषिभिः) विद्वानों ने इन दोनों को ही ठीक ठीक धर्म माना है।