Manu Smriti
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गिरिपृष्ठं समारुह्य प्रसादं वा रहोगतः ।अरण्ये निःशलाके वा मन्त्रयेदविभावितः ।।7/147

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पहाड़, प्रासाद वा जंगल इत्यादि एकान्त स्थान पर बैठकर मन्त्रणा में विघ्न डालने वाले मनुष्यों को पृथक् करके मन्त्रणा करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पश्चात् उसके साथ घूमने को चला जाये पर्वत की शिखर अथवा एकान्त घर वा जंगल जिसमें एक श्लाका भी न हो वैसे एकान्त स्थान में बैठकर विरूद्ध भावना को छोड़ मन्त्री के साथ विचार करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
तब गुप्त मन्त्रणा करने के समय राजा किसी पर्वत के शिखर पर आरूढ़ होकर, या एकान्त राजमहल में जाकर, वा झाड़ी-झङ्कार से शून्य सर्वथा एकान्त जंगल में बैठकर, विरुद्ध भावना से रहित होकर, मंत्रियों के साथ विचार करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
मन्त्रियों से परामर्श ऐसे स्थान पर करना चाहिये जहाॅ कोई पहुच न सके । अर्थात पहाड की चोटी पर या एकान्त महल में या जगल मे।
 
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