Manu Smriti
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उत्थाय पश्चिमे यामे कृतशौचः समाहितः ।हुताग्निर्ब्राह्मणांश्चार्च्य प्रविशेत्स शुभां सभाम् ।।7/145

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पहर रात्रि शेष रहे उठ कर शौचादि से निवृत्ति हो स्नान कर एकाग्र चित्त हो अग्निहोत्र तथा ब्राह्मण का पूजन करने पश्चात् राजसभा में प्रवृष्टि हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब पिछली प्रहर रात्रि रहे तब उठ शौच और सावधान होकर परमेश्वर का ध्यान अग्नि - होत्र विद्वानों का सत्कार और भोजन करके भीतर सभा में प्रवेश करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वह राजा रात्रि के पिछले पहर तड़के उठकर और मल-मूत्र का त्याग-दन्तधावन-स्नान-प्राणायाम-व्यायाम से शरीर-शुद्धि करके, एकाग्रचित्त होकर, परमेश्वर का ध्यान और अग्निहोत्र करे। तत्पश्चात्, धार्मिक विद्वानों का सत्कार करके सुन्दर सभा-भवन में प्रवेश करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पश्चिमे यामें उत्थाय) बहुत तडके उठकर (कृतशोचः) शौच आदि कर्म करके (समाहित) घ्यान लगाकर (हुताग्रि) हवन करके (ब्राहाणो च अच्र्य) ब्राहाम्णो का सत्कार करके (शुभाम सभाम प्रविशेत सः) अपनी शुभ सभा में बैठे ।
 
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