Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रजा का पालन करना क्षत्रियों का परम-धर्म है जो राजा शास्त्रानुसार कार्य करता है उसको धर्मात्मा कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इसलिए राजाओं का प्रजापालन ही करना परम धर्म है और जो मनुस्मृति के सप्तमाध्याय में कर लेना लिखा है और जैसा सभा नियत करे उसका भोक्ता राजा धर्म से युक्त होकर सुख पाता है, इससे विपरीत दुःख को प्राप्त होता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, प्रजा-पालन ही राजादि क्षत्रिय का परमधर्म है। क्योंकि कर-व्यवस्था के अनुसार निर्दिष्ट कर का लेने वाला, और उसमें से निर्दिष्ट अंश ही अपने भोग में लाने वाला राजा धर्म से युक्त होकर सुख पाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
प्रजा का पालन ही क्षत्रिय का परमधर्म है । राजा को योग्य है कि अपने धर्म का ही निदिष्त फल भोगे । अर्थात अपने धर्म को पालन करने से जो फल मिलता है उसी पर संतुष्ट रहे अन्य प्रकार के सुख भोगने की आकडक्षा न करे ।