Manu Smriti
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विक्रोशन्त्यो यस्य राष्ट्राद्ह्रियन्ते दस्युभिः प्रजाः ।संपश्यतः सभृत्यस्य मृतः स न तु जीवति ।।7/143

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस राजा और राजकर्मचारियों को देखते हुए राज्य में चोरों द्वारा लुटी हुई प्रजा त्राहि त्राहि पुकारती है वह राजा जीवित ही मृतक के समान है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस भृत्यसहित देखते हुए राजा के राज्य में से डाकू लोग रोती, विलाप करती प्रजा के पदार्थ और प्राणों को हरते रहते हैं वह जानों भृत्य - अमात्यसहित मृतक है जीता नहीं है और महादुःख पाने वाला है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिस, राजकर्मचारियों सहित देखते हुए, राजा के राज्य में से डाकू लोग रोती-विलपती प्रजा के पदार्थों और प्राणों को हरते रहते हैं, वह राजकर्मचारियों सहित राजा मृतक-समान है, जीवित नहीं, और अतएव वह महादुःख का पाने वाला होता है।
 
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