Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इसी प्रकार अपने योग्य कार्यों को निश्चित करे तथा प्रमोद आदि दोषों को परित्याग कर दत्तचित्त हो परिश्रम के साथ ¬प्रजा की रक्षा करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस प्रकार सब राज्य का प्रबन्ध करके सदा इसमें युक्त और प्रमादरहित होकर अपनी प्रजा का पालन निरन्तर करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार राजा राज्य-प्रबन्ध-सम्बन्धी अपने इन सब कामों की व्यवस्था करके, सदा उसमें युक्त और प्रमादरहित होकर, इस प्रजा का निरन्तर पालन करे।