Manu Smriti
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अमात्यमुख्यं धर्मज्ञं प्राज्ञं दान्तं कुलोद्गतम् ।स्थापयेदासने तस्मिन्खिन्नः कार्येक्षणे नृणाम् ।।7/141

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा यदि न्याय करने में कष्ट पावे तो अपने स्थान पर ऐसे ब्राह्मण को नियत करे जो प्रधानमन्त्री, धर्मात्मा जितेन्द्रिय तथा कुलवान् हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. प्रजा के कार्यों की देखभाल करने में रूग्णता आदि के कारण अशक्त होने पर उस अपने आसन पर न्यायकारी धर्मज्ञाता बुद्धिमान् जितेन्द्रिय कुलीन प्रधान अमात्य - मन्त्री को बिठा देवे अर्थात् रूग्णावस्था में प्रधान अमात्य को अपने स्थान की जिम्मेदारी देवे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(नृणाम कार्येचणो खित्र:) यदि स्वंय राजाओ के करने का जो काम है उसमे कुछ रोग आदि के कारण खित्रता हो और राजा स्वयं न जा सके तो अपने मुख्य मंत्री को जो धर्मज्ञ बु़द्धि - मान आत्मसंयमी तथा कुलीन हो अपने आसन पर बिठाल दे ।
 
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