Manu Smriti
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तीक्ष्णश्चैव मृदुश्च स्यात्कार्यं वीक्ष्य महीपतिः ।तीक्ष्णश्चैव मृदुश्चैव राज भवति सम्मतः ।।7/140

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा कार्य को देखकर उसके अनुसार मृदु या तीक्ष्ण होवे (अर्थात् उत्तम कार्य में मृदु तथा अधम कार्य को देख तीक्ष्ण होवे) ऐसा राजा सबको प्रिय है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो महीपति कार्य को देखकर तीक्ष्ण और कोमल भी होवे वह दुष्टों पर तीक्ष्ण और श्रेष्ठों पर कोमल रहने से अतिमाननीय होता है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को कार्य देखकर कोमल और कठोर होना चाहिए। क्योंकि, दुष्टों पर कठोर और श्रेष्ठों पर कोमल होने से राजा अतिमाननीय बनता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(महीपति) राजा (कायर्य वीक्ष्य) काम को दृष्टि मे रखकर (तीक्ष्णा: च एवं मृदु च स्यात) कडाई या नरमी करे । क्योकि जो राजा कडा भी हो सकता है और नरम भी उसका सब मान करते है ।
 
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