Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. राज्य में व्यापार से जीविका करने वाले प्रत्येक व्यक्ति से राजा को थोड़ा बहुत तो वार्षिक कर के नाम से कुछ न कुछ लेना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राजा (यत किचित अपि) ऊपर के हिसाब से कम भी वर्षस्य कर संज्ञितम वार्षिक कर दापयेत वसूल करावे (कारूकान) बढई (शिल्पिनः) कारीगर (शूदा्रन) मजदूर (आत्म उपजीविना) नौकर इनसे (महीमतिः) राजा (मासि मासि) हर महीने (एक एक कारयेत) एक एक बार काम ले लेवे । कर न लगावे ।