Manu Smriti
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पञ्चाशद्भाग आदेयो राज्ञा पशुहिरण्ययोः ।धान्यानां अष्टमो भागः षष्ठो द्वादश एव वा ।।7/130

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पशु व सोने के लाभ का पचासवाँ भाग लेवे, धान्य के लाभ का छठा, आठवाँ व बारहवाँ भाग लेवे। भूमि की उर्वरा आदि दशा को देख तथा जोतने आदि के परिश्रम को विचार कर नियत करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘जो व्यापार करने वाले वा शिल्पी को सुवर्ण और चांदी का जितना लाभ हो उसमें से पचासवां भाग, चावल आदि अन्नों में छठा आठवां वा बारहवां भाग लिया करे, और जो धन लेवे तो भी उस प्रकार से लेवे कि जिससे किसान आदि खाने - पीने और धन से रहित होकर दुःख न पावें ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
राजा को पशुओं और सोने के लाभ में से पचासवां भाग, और अन्नों का छठा, आठवां या अधिक से अधिक बारहवां भाग ही लेना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को व्यापारी व शिल्पिजनों से पशुओं तथा सोना चान्दी के लाभ का पचासवां भाग लेना चाहिए। और चावल आदि अन्नों का आठवां, अथवा छठा या बारहवां भाग लेना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पशु और सोने के व्यापार से जो लाभ हो, उसका पचासवाँ भाग राजा को लेना चाहिये, आप का आठवाँ, छठा या बारहवाँ।
 
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