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वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियं आत्मनः ।एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् । । 2/12

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद, शास्त्र सदाचार और अच्छे पुरुषों की काय्र्य-प्रणाली, जिससे अपने चित्त को सत्य तथा पूर्ण विश्वास हो, यह चारों धर्म के लक्षण हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. वेदः स्मृतिः सदाचारः वेद, स्मृति , सत्पुरूषों का आचार च और स्वस्य आत्मनः प्रियम्, अपने आत्मा के ज्ञान से अविरूद्ध प्रियाचरण एतत् चतुर्विधं धर्मस्य लक्षणम ये चार धर्म के लक्षण हैं अर्थात् इन्हीं से धर्म लक्षित होता है । (स० प्र० दशम समु०) साक्षात् सुस्पष्ट या प्रत्यक्ष कराने वाले । ‘‘श्रुंति - वेद, स्मृति - वेदानुकूल आप्तोक्त, मनुस्मृत्यादि शास्त्र सत्पुरूषों का आचार जो सनातन अर्थात् वेद द्वारा परमेश्वर प्रतिपादित कर्म और अपने आत्मा में प्रिय अर्थात् जिसको आत्मा चाहता है जैसा कि सत्यभाषण, ये चार धर्म के लक्षण अर्थात् इन्हीं से धर्माधर्म का निश्चय होता है । जो पक्षपातरहित न्याय सत्य का ग्रहण असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार है, उसी का नाम धर्म और इस के विपरीत जो पक्षपात सहित अन्यायाचरण, सत्य का त्याग और असत्य का ग्रहण रूप कर्म है, उसी को अधर्म कहते हैं ।’’ (स० प्र० तृतीय समु०) धर्मजिज्ञासा में श्रुति परमप्रमाण -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियम् आत्मनः) वेद, स्मृति, सदाचार और अपने आत्मा का प्रिय, (एतत् चतुर्विधम्) इस चार प्रकार को (प्राहुः) कहते हैं। (साक्षात् धर्मस्य लक्षणम्) धर्म का साक्षात् लक्षण। धर्म की चार पहचानें हैं। (1) वेद (2) स्मृति (3) सत्पुरुषों का आचरण और (4) जो अपने आत्मा को प्रिय हो, जैसा कि सत्य भाषण।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः वेद, आर्ष स्मृति, सत्पुरुषों का आचार और अपने आत्मा का प्रियाचरण, ये चार प्रकार के धर्म के सुस्पष्ट लक्षण कहे गये हैं, जिन से धर्म का स्वरूप लक्षित होता है।
 
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