Manu Smriti
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यथाल्पाल्पं अदन्त्याद्यं वार्योकोवत्सषट्पदाः ।तथाल्पाल्पो ग्रहीतव्यो राष्ट्राद्राज्ञाब्दिकः करः ।।7/129

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जैसे जोंक, बछड़ा तथा भौंरा यह सब अपने खाद्यपदार्थ को थोड़ा थोड़ा खाते हैं, वैसे ही राजा अपने राज्य से वार्षिक कर थोड़ा थोड़ा लेवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे जोंक, बछड़ा और भंवरा थोड़े - थोड़े भोग्य पदार्थ को ग्रहण करते हैं वैसे राजा प्रजा से थोड़ा - थोड़ा वार्षिक कर लेवे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजो को चाहिए कि जैसे जोंक, बछड़ा और म्रमर, रक्त दूध और मधु, इन अपने भोज्य पदार्थों को थोड़ा-थोड़ा करके खाते हैं, वैसे ही वह भी प्रजा से थोड़ा-थोड़ा ही वार्षिक कर लिया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथा) जैसे (वार्योकः) जोंक, (बत्स) बछड़ा, (षट्-पदाः) भ्रमर (अल्पम्) थोड़ा थोड़ा करके बिना पीड़ा पहुँचाये (आद्यम्) अपने भोजन को (अदन्ति) खाते हैं। राज से (राज्ञा) राजा के द्वारा (आब्दिकः करः) सालाना महसूल (अहोतव्यः,) उगाया जाना चाहिये। जौंक जिसका खून पीति हैं, उसको हानि नहीं पहुँचाती, बछड़ा माता को हानि नही पहुँचाता और भौरा फूलों का रस ऐसा कर लेना चाहिये कि प्रजा को कभी हानि न पहुँचे।
 
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