Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस विधि से कार्यकत्र्ता तथा राजा को लाभ हो उसी विधि को देखकर राजा अपने कर नियत करे जो प्रत्येक मनुष्य पर एक समान हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे राजा और कर्मों का कत्र्ता राजपुरूष व प्रजाजन सुखरूप फल से युक्त होवे वैसे विचार करके राजा तथा राज्यसभा राज्य में कर - स्थापन करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को चाहिए कि वह विचार करके राज्य में निरन्तर ऐसे करों को निर्धारित करे, जिस से राजा और कृष्यादि कर्मों का करने वाला प्रजापुरुष सुखरूप फल से युक्त होवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथा) जिस रीति से (राजा) राजा (कर्मणाम कर्ता च) और व्यापारी (फलेन युज्येत) दाक दोनों को अच्छा फल मिले, (तथा अवेक्ष्य) उसी रीति से जाँच करके (नृपः राष्टे सततम् करान् कल्पयेत्) राजा राज में कर लगावे।
अर्थात् ’कर’लगाने में मुख्य दो बातो का विचार रखाना चाहिये, एक तो व्यापार की सुविधा और दूसरे राज्य की भलाई।