Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
क्रयविक्रयं अध्वानं भक्तं च सपरिव्ययम् ।योगक्षेमं च संप्रेक्ष्य वणिजो दापयेत्करान् ।।7/127

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन सब बातों पर विचार कर व्यापारियों से कर लेवे अर्थात् किस मूल्य को मोल लिया, भोजनादि में क्या व्यय पड़ा, कितनी दूर से लाया, माल की रक्षा में क्या व्यय पड़ा तथा कितना लाभ प्राप्त होगा ?
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. खरीद और बिक्री भोजन तथा भरण - पोषण का व्यय और लाभ इन सब बातों पर विचार करके राजा को व्यापारी से कर लेने चाहिए ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वणिजः) व्यापारी से (करान) महसूल का (दापयेत) दिलवाने इन इन बातों को देखकर:- (1) क्रय - खरीद (2) विक्रय - बिक्री (3) अघ्वानम -मार्ग की अवस्था () (4) भक्त - लाने में कितना भोजन आदि का व्यय पडा (5) परिव्यंय - रक्षा के लिये कितना भोजन आदि का व्यय पडा (5) परिव्यंय -रक्षा के लिये कितना यत्न करना पडा ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS