Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. राजा राजकार्यों में नियुक्त राज पुरूषों स्त्रियों और सेवक वर्ग की पद और काम के अनुसार प्रतिदिन की कर्मस्थान और जीविका निश्चित कर दे ।
टिप्पणी :
‘‘जितने से उन राजपुरूषों का योगक्षेम भलीभांति हो और वे भलीभांति धनाढय भी हों, उतना धन वा भूमि राज्य की ओर से मासिक वा वार्षिक अथवा एक बार मिला करे । और जो वृद्ध हों उनको भी आधा मिला करे, परन्तु यह ध्यान में रखे कि जब तक वे जियें तब तक वह जीविका बनी रहे पश्चात् नहीं । परन्तु इनके सन्तानों का सत्कार वा नौकरी उनके गुण के अनुसार अवश्य देवे । और जिसके बालक जब तक समर्थ हों और उनकी स्त्री जीती हो तो उन सब के निर्वाहार्थ राज की ओर से यथायोग्य धन मिला करे । परन्तु जो उसकी स्त्री वा लड़के कुकर्मी हो जायें तो कुछ भी न मिले ऐसी नीति राजा बराबर रखे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु राजा इस बात का ध्यान रखे कि उन दण्डित राजपुरुषों को दैनिक निर्वाह के योग्य, धन वा भूमि राज्य की ओर से मिले। उन के मरने के पश्चात् उन की स्त्रियों, तथा असमर्थ नाबालिग सन्तानों को उन के कर्मानुरूप निर्वाह-योग्य धन मिलता रहे। अर्थात्, यदि उनकी स्त्रियें व सन्तानें कुकर्मी हो जावें तो उन्हें कुछ सहायता न दी जावे। एवं, समर्थ हो जाने पर उनकी योग्य सन्तानों को उनके कर्मानुरूप राज्य-पद (नौकरियां) प्रदान किये जावें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(कर्मसु यंक्तानाम) काम मे नियुक्त (स्त्रीणाम) स्त्रियों (प्रेष्य-जनस्य च) और कर्मचारियो की (प्रत्यहम वृतम कत्पयेत) दैनिक वेतन नियत करे (स्थानम) ओर पदवी को भी (कर्मा-नुरूपतः) कर्म के अनुसार ।